Tuesday, July 18, 2006

तुम


किसी के पागलपन की पहचान हो तुम,

किसी की ज़िन्दगी का अरमान हो तुम,
मुस्कराना भले ही कुछ ना हो तुम्हारे लिये,
किसी की ज़िन्दगी की मुस्कान हो तुम.


किसी की सबसे खूबसूरत रचना हो तुम,
किसी की प्रथम और अन्तिम अर्चना हो तुम,
ख़ुद को भले ही तुम कभी समझ ना सकी हो,
पर किसी के लिये अधूरा अन्सुना सपना हो तुम.



किसी के प्यार भरी नज़रों की कामना हो तुम,
किसी के वर्षों की तमन्ना और साधना हो तुम,
कहीं हो पूजा, कहीं हो दुआ,
कहीं पे नेमत्त, कहीं प्रार्थना हो तुम.



बर्फ़ से जल उठे जो, किसी की वो प्यास हो तुम,
ईश्वर ही रह जाये जिसके बाद, वो आस हो तुम,
चलना ज़रा आहिस्ता अपना वज़ूद समझकर,
किसी टिमटिमाते दिये की आखिरी साँस हो तुम.


ज़िन्दगी की शुरूआत ना सही, समापन तो हो तुम,
किसी की मोहब्बत का एकमात्र समर्पण हो तुम,
हजारों चेहरों में खोये इन चेहरों को गौर से देखो,
किसी एक चेहरे के लिये जीवन का दर्पण हो तुम.


- पंकज बसलियाल