Friday, January 26, 2007

कोई तो थी वो मेरी

खोयी हुयी सी इन अंधेरों में, सिर्फ एक नाम सी लगती है,
वो मेरे जैसे ही थी, पर दुनिया को बदनाम सी लगती है .
आज मैं और वो कुछ नहीं एक दूजे के लिए भले ही ,
गीली रेत पे मगर कभी कभी, वो पैरों के निशान सी लगती है .

वो मुस्कराती थी कभी कभी, मुझ पर बिजलियाँ गिराने को ,
वो मुस्कराती थी कभी मुझे जलाने को कभी मनाने को .
वो किसी भी वजह से सही, वो मुस्कराती तो थी मगर ,
दुनिया को रास ना आ सकी , वो ऎसी मुस्कान लगती है..

मैं नहीं जानता कि आज फिर ये वही अफ़सोस क्यों है ?
उसके आँसुओं के जवाब में, हर कोई खामोश क्यों है?
वो मेरी बन ना पायी सब कुछ चाहकर भी और..
मैं ये ना बता पाया कि इसमें भी उसका दोष क्यों है?

खोयी हुयी सी इन अंधेरों में, सिर्फ एक नाम सी लगती है,
वो मेरे जैसे ही थी, पर दुनिया को बदनाम सी लगती है