Friday, March 14, 2008

तुम भाग-२

महक उठे मिट्टी भी , वो एक बरसात हो तुम,
रोशन कर दे ज़र्रा ज़र्रा , पूनम की रात हो तुम,
मेरे लिये वजह तो कभी कुछ थी ही नहीं मगर,
जीता हूँ जिस जिसके लिये , वो हर बात हो तुम।
खुशनुमा सुबह हो, या उससे पहले की सहर हो तुम,
वक़्त हो पल भर का,या जीवन का हर प्रहर हो तुम,
चाँद को कह तो दूँ , प्रतिमान सुन्दरता का मगर,
चाँदनी की किस्मत पर , रूप का कहर हो तुम।
सिर्फ एक मौसम हो , या पूरी बहार हो तुम,
पहली खामोशी हो , या आखिरी पुकार हो तुम,
लड़ने की आरज़ू हो, या मरने की हसरत हो,
जीत हो किसी की ,या किसी की हार हो तुम।
अहसास तुमको ना सही , किसी का अहसास हो तुम,
दुनिया बदल दे जो, दिल की वो आवाज़ हो तुम,
खुद की अहमियत से हो अन्जान, पर अब तो जान लो,
कि सुरों की थिरकन हो , जीवन का साज हो तुम।
क्षितिज हो किसी का, किसी का फलक हो,
हंसने की वज़ह हो, खुशियों की झलक हो,
अपने वज़ूद को समझने की कोशिश तो करो,
लड़ने का इरादा हो तुम, जीत की ललक हो.

Sunday, March 2, 2008

फ़िर जला गया कोई |


अंधेरों भरी दुनिया में, एक सूरज दिखा गया कोई,
सपनों की महफ़िल से, आधी रात जगा गया कोई
चिंगारी भी ना बची थी, शमा भी पिघल चुकी मगर ,
जलती बुझती इस आग को, फ़िर जला गया कोई.

Sunday, January 13, 2008

वो मिट्टी




वो मिट्टी पुकारती है , वो ज़मीन बुलाती है ;
जीते मरते हर पल , मुझे तेरी याद आती है ;
कुछ साँसे थम सी गयी हैं, तुझसे जुदा होकर ,
तुझसे मिलने की ख्वाहिस, एक जिंदगी दे जाती है;


वो मन्दिर की घंटी , वो मस्जिद की अजान,
वो किताबों में कहीं , वो गीता और कुरान ,
मैं देखता हूँ ,आजकल सोते जागते हर जगह ,
वो होता महाभारत , वो कन्हैया की मुस्कान ;

है एक यही ख्वाहिश , है एक यही आरजू ;
वो बिखरती रेत और वो मिट्टी की खुशबू ;
मैं छूना चाहता हूँ , तुझे एक बार फ़िर से ;
यही है मकसद अब , यही मेरी जुस्तजू ;

- पंकज बसलियाल ( १३ जनवरी २००८ , स्वदेस देखने के बाद )