Monday, October 5, 2009

त्यागी , दर्शन और दोस्ती

आज शाम को ऑफिस से निकलने से पहले रेस्टरूम के शीशे में जब खुद को देखा तो एक पल को रुक सा गया था.. ब्लेज़र पहने अपने आपको एक प्रोफेशनल बन्दे की तरह देखना एक अलग अनुभव होता है शायद.. पहले कभी गौर नहीं किया था... यूँ ही अचानक कॉलेज का फर्स्ट इयर याद आ गया... याद आया कि टाई बांधनी नहीं आती थी .. लॉबी में हम कुछ लोग थे जिनकी टाई त्यागी बांध दिया करता था.. आज खुद को शीशे में देखकर वो कुछ पल याद आ गए.. "फ्रेशर पार्टी" से पहले त्यागी मेरी टाई तैयार कर रहा था.. १०-१२ साल से खुद ही तैयार होके स्कूल जाता था मैं .. उस से पहले माँ ने कभी कभार थोडी बहुत मदद कर दी होगी तैयार होने में, पर उस दिन जिस तल्लीनता के साथ त्यागी टाई बाँध रहा था वो पल स्मृति में हमेशा के लिए छप गए...
त्यागी याद आया तो दर्शन भी याद आ ही जाता है.. हालाँकि इसका उल्टा कम ही होता है कि दर्शन याद आये तो त्यागी भी याद आ जाये और उसके अपने स्वाभाविक कारण भी हैं..
हम तीन दोस्त थे... दोस्त अक्सर एक जैसे होते हैं, एक जैसी आदतों वाले या फिर व्यवहार वाले .. हम तीन अलग अलग दिशाएं थे.. सब कुछ सही था बस एक चौथी दिशा की कमी थी.. वरना त्यागी पूर्व था दर्शन पश्चिम और तो मैं एकदम उत्तर.. कुल मिलाजुलाकर हम तीनो बहुत अलग थे.. पर हम बहुत अच्छे दोस्त थे.. आज भी हैं पर जिंदगी के विस्तार में ये रिश्ता दोस्ती के तराजू में कभी ऊपर तो कभी नीचे होता रहता है..
हाँ, तो बात त्यागी की हो रही थी.. बहुत हिम्मती लड़का है जी.. कोई भी काम बोल दो.. हमेशा साथ देने को तैयार.. पर शर्त ये कि काम कुछ उल्टा होना चाहिए.. मतलब कोई तो रुल ब्रेक होना चाहिए ऐसा कोई काम हो ..
खैर त्यागी को कुछ बोलने जाओ तो कम से कम सुनता तो था.. भगवान ही जानता है कि पल्ले कितना पड़ता था पर सुनता तो था कम से कम ... इसके ठीक उलट दर्शन ... उसे कुछ सुनाने जाओ तो उसके बचपन की कम से कम २०-३० कहानियां सुनके वापस आना पड़ता था... २०-३० तो ज्यादा हो गयी पर १६-१७ तो भाई हसीं मजाक में सुना ही देता था..
अब व्यक्तित्व का टकराव देखिये साहब.. एक शुरुआत के कुछ साल सिर्फ लड़कियों से घिरा रहा तो दूसरा दूर भागता रहा.. ( हालाँकि ऐसा सिर्फ सांत्वना देने के लिए लिखा जा रहा है..) और कॉलेज के आखिरी सालों में दोनों ने रोल बदल लिए.. अब पहला लड़कियों से भागने की कोशिश करता था तो दूसरा परेशान था कि कहानी कहाँ आगे बढाई जाये... अब ये विचार का एक अलग मुद्दा हो सकता है कि हम तीनो ही लड़कियों के मामले में उस कॉलेज से कोरे हाथ ही बाहर आये, इतनी तमाम कहानियों के बावजूद भी.. मैं उन समस्त कहानियों की नायिकाओं एवं रकीबों को तह-ए-दिल से माफ़ करता हूँ जिसके नायक हममें से कोई भी रहा हो....
हाँ जी , मुद्दे पे वापस आते हैं.. त्यागी अपनी बास्केटबाल टीम का कप्तान था... नहीं नहीं भाई मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ...सच में वो कप्तान था..
खैर उसका बस चलता तो वो हर स्पोर्ट्स टीम का कैप्टेन बन सकता था.. पर शराफत से भाई ने मुझसे बोला.. "अबे !!! जो खेलना आता है उसी का तो कैप्टेन बनूँगा ना.." मैंने भी सोचा बात में दम तो है.. पर फिर बास्केटबाल क्यूँ ?
खैर दर्शन भी अपनी टीम का कैप्टेन था.. क्रिकेट या बालीबाल का शायद.. अब शायद इसीलिए कि जिस टीम की कप्तानी वो कर रहा हो.. उस टीम को तो छोडिये मुझे तो डर था कि लोग कहीं वो खेल देखना ही ना छोड़ दें कॉलेज में.. पर शुक्र है ऐसा हुआ नहीं. लोगो की दिलचस्पी बरक़रार रही.. मैं भी खेल लेता था कभी कभी.. अब जिसके दो दोस्त कप्तान हों वो कुछ खेले ना तो धिक्कार है ऐसी दोस्ती पे.. मुझे तो बल्कि प्रमाणपत्र भी मिला है क्रिकेट में प्रथम स्थान पाने को..वो अलग बात है कि मैंने पूरे टूर्नामेंट में सिर्फ ७ बाळ के लिए फील्डिंग करी है.. बैटिंग और बालिंग तो खैर छोडिये..
चलो, पढाई की बात करते हैं.. दर्शन की तरह दर्शन की पढाई भी रहस्यमयी थी, कब कहाँ कैसे ये सवाल आज भी जस के तस बरक़रार हैं .... और त्यागी की तरह त्यागी की पढाई रोमांच से भरपूर.. रोमांच की पराकाष्ठा देखिये त्यागी दिन के आधे से अधिक समय लाइब्रेरी में ही पढाई करता था.. पर दोनों ने गाहे-बगाहे बहुत से और लोगो के साथ मिलकर मेरी काफी मदद की है और सच कहूँ तो मेरे इंजीनियरिंग पूरा कर सकने में दोनों का बहुत बड़ा योगदान है..
किस्से कई हैं , अंतर कई हैं, बातें बहुत हैं.. पर कोई चीज अगर सिर्फ एक है तो वो है दोस्ती..
सारांश में कहूँ तो इतना कि मेरे दोनों दोस्तों के व्यक्तित्व में जो अंतर था उसने मुझे एक जगह दी उनके बीच में अपनी हसरतों के पल सकने की.. दोनों जितने ज्यादा अलग थे एक दुसरे से, हम तीनो उतने ही करीब थे..

कभी कभी दर्शन कहता है कि जब उसे मदद कि जरूरत होगी तो मेरे पास आने के बजाय त्यागी से मदद माँगेगा.. और ये इस पूरे ब्लॉग का इकलौता ऐसा सच है जो मजाक नहीं है..
कल मेरा जन्मदिन है :) तो सोचा उससे पहले अपने दो बेहतरीन दोस्तों को याद करूँ ताकि नए साल में प्रवेश करते हुए दोस्ती को लेकर मेरी जो इच्छाएं है.. वो अपना मकाम हासिल कर सकें..

इति समाप्त: