Tuesday, August 29, 2006

सज़ा-ए-मौत

अरमान ना बचेंगे कोई , आरज़ू भी खो जायेगी,
ना खुशी हँस पायेगी और ना ही रो पायेगी,
मौत कहती है ... कि सज़ा मत कहो मुझे...,
वर्ना इक दिन ज़िन्दगी बे-आबरू हो जायेगी.

रोने की तमन्ना सिर्फ़ एक सपना बन जयेगा..,
खुशियोँ की आन्धी में तेरा दम घुट जायेगा..,
गमों से भागने की वजह तेरे पास है भले ही,
पर ज़िन्दगी के साथ रहकर तू ज्यादा पछ्तायेगा..

तेरे अपने तुझे कब तक गले लगायेंगे..
रूठ जा तू हर बार शायद लोग मनायेंगे..
तू नादान है, समझता है रोज़ यही चलेगा..
पर देखना, इक दिन सारे रिश्ते बदल जायेंगे.

तेरा तमाशा बनेगा और तू खुद पर ही हंसेगा..
और उस दिन तेरे साथ ये सारा ज़माना कहेगा..
ये जीना भी कोई जीना है भला..
मर जाने से बेहतर हाल मे आखिर तू कब तक रहेगा?

यक़ीन ना आये अगर तो एक बर मुड़ के देख ले,
सारी दुनिया को झुका ले या एक बार झुक के देख ले,
अन्ज़ाम तेरा मैं खुद क्या कहुं तू जान लेगा..,
वक़्त ज़्यादा दूर भी नहीं बस थोड़ रुक के देख ले.

उस वक़्त जब ज़िन्दगी मौत से बद्तर हो जायेगी..
उस वक़्त जब खुशियाँ आ आकर रुलायेंगी,
उस वक़्त जब हर कोई तुझे चहेगा और तू कुछ भी नहीं,
उस वक़्त मौत कि कीमत तुझे समझ आ जायेगी.

अरमान ना बचेंगे कोई , आरज़ू भी खो जायेगी,
ना खुशी हँस पायेगी और ना ही रो पायेगी,
मौत कहती है ... कि सज़ा मत कहो मुझे...,
वर्ना इक दिन ज़िन्दगी बे-आबरू हो जायेगी.


- पंकज बसलियाल

Tuesday, July 18, 2006

तुम


किसी के पागलपन की पहचान हो तुम,

किसी की ज़िन्दगी का अरमान हो तुम,
मुस्कराना भले ही कुछ ना हो तुम्हारे लिये,
किसी की ज़िन्दगी की मुस्कान हो तुम.


किसी की सबसे खूबसूरत रचना हो तुम,
किसी की प्रथम और अन्तिम अर्चना हो तुम,
ख़ुद को भले ही तुम कभी समझ ना सकी हो,
पर किसी के लिये अधूरा अन्सुना सपना हो तुम.



किसी के प्यार भरी नज़रों की कामना हो तुम,
किसी के वर्षों की तमन्ना और साधना हो तुम,
कहीं हो पूजा, कहीं हो दुआ,
कहीं पे नेमत्त, कहीं प्रार्थना हो तुम.



बर्फ़ से जल उठे जो, किसी की वो प्यास हो तुम,
ईश्वर ही रह जाये जिसके बाद, वो आस हो तुम,
चलना ज़रा आहिस्ता अपना वज़ूद समझकर,
किसी टिमटिमाते दिये की आखिरी साँस हो तुम.


ज़िन्दगी की शुरूआत ना सही, समापन तो हो तुम,
किसी की मोहब्बत का एकमात्र समर्पण हो तुम,
हजारों चेहरों में खोये इन चेहरों को गौर से देखो,
किसी एक चेहरे के लिये जीवन का दर्पण हो तुम.


- पंकज बसलियाल