Sunday, January 13, 2008

वो मिट्टी




वो मिट्टी पुकारती है , वो ज़मीन बुलाती है ;
जीते मरते हर पल , मुझे तेरी याद आती है ;
कुछ साँसे थम सी गयी हैं, तुझसे जुदा होकर ,
तुझसे मिलने की ख्वाहिस, एक जिंदगी दे जाती है;


वो मन्दिर की घंटी , वो मस्जिद की अजान,
वो किताबों में कहीं , वो गीता और कुरान ,
मैं देखता हूँ ,आजकल सोते जागते हर जगह ,
वो होता महाभारत , वो कन्हैया की मुस्कान ;

है एक यही ख्वाहिश , है एक यही आरजू ;
वो बिखरती रेत और वो मिट्टी की खुशबू ;
मैं छूना चाहता हूँ , तुझे एक बार फ़िर से ;
यही है मकसद अब , यही मेरी जुस्तजू ;

- पंकज बसलियाल ( १३ जनवरी २००८ , स्वदेस देखने के बाद )

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