Saturday, August 8, 2009

अक्तूबर २००२

मैं असीम अनंत और अपराजेय का,
बन न पाऊं कभी विकास |
हो सके प्रभु, गर तेरे बस में,
कर दे जीवनशक्ति का विनास |

मैं झूलता रहूँ कुपित सृष्टिपथ पर,
न न्योछावर हो जाऊं किसी शपथ पर,
कभी न चलूँ अब इस ज़मीन पर,
कर दे सवार मुझे मृत्युरथ पर,

अपनी अक्षमता और अविवेक का,
हो न पाए कभी ह्रास |
हो सके प्रभु, गर तेरे बस में,
कर दे जीवनशक्ति का विनास |


मैं अब्रह्माण्ड की माया का जालभुक्त न बनू कभी,
एक एक कर तोड़ दे, साथ मेरे हैं जो सभी,
लोभी बन जाऊं प्रलोभ का, जी ना पाऊं चैन से,
मृत्यु आ अंक लगा, और वरन कर मेरा अभी|

भूत मेरा खो चुका और भविष्य बना दे तू इतिहास |
हो सके प्रभु, गर तेरे बस में,
कर दे जीवनशक्ति का विनास |

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