Sunday, June 17, 2007

अर्थ का अनर्थ सही

होश में किसी के, ना किसी के ख्वाब में,
संगीत मे किसी के, ना किसी की ताल में,
ये ज़िन्दगी लिखी हुयी कभी कहीं ना मिली,
ना किसी के हाल पे, ना काल के कपाल पे.

खोजा इसे मैंने, हर प्रवत के भाल पे,
दिखी कहीं नही मगर, ज़िन्दगी की चाल ये,
बुझ गयी तमन्ना इस ज़िन्दगी को सीखने की,
ये सोच मे मिली मुझे ना किसी खयाल में.

मेरे साथ ही शायद ,खत्म हो बवाल ये,
जवाब कुछ मिले, मगर रह जायेगा सवाल ये.
मैं मर जाउँगा मगर इसी उम्मीद से कि,
क्या पता मुझे मिले, ये मौत के हि गाल पे .

अर्थ का अनर्थ सही,
सब कुछ ही व्यर्थ सही.
पाने कि हसरत बुझी नहीं,
होंसले कहीं गर्क सही.
- पंकज बसलियाल

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