Tuesday, July 17, 2007

पर एक पल की प्रीत ना पाते


कुछ तो होता पास अपने, जो कभी लुटा ना पाते,
कोई तो याद चुभती इतनी , कि कभी भुला ना पाते,
कोई तो बात इतनी कड़वी होती, कि किसी को सुना ना पाते,
कोई तो होता खुश इस कदर, कि हम भी उसे रुला ना पाते.

ख़ुशियों की होती इतनी कीमत, कि किसी को चुका ना पाते,
कोई तो रात होती इतनी अभागी, कि किसी को सुला ना पाते,
आसूं बहते रोज़ यूं ही, मगर इन आखोँ को सुजा ना पाते,
कोई तो आग जलती सीने मे, जिसे चाहकर भी बुझा ना पाते.

कोई तो सबक होता ऐसा, जिसे किसी को सिखा ना पाते,
कोई तो ज़ख्म होता इतना गहरा, कि कभी तुम्हें दिखा ना पाते,
कभी तो मरता वक़्त युं भी, कि तकदीर से भी ज़िला ना पाते,
कोई तो बिछुड़ता इस कदर, कि उमर भर फ़िर मिला ना पाते.

कोई ज़ुर्म किया होता ऐसा, कि उसकी हम सज़ा ना पाते,
पाते दुश्मनी हर जगह, पर दोस्त से कभी दगा ना पाते,
कोई तो दर्द होता किसी कोने में, कि कभी बता ना पाते,
कोई तो खुशी बन जाती इतनी बडी, कि आखोँ से भी जता ना पाते.

ख़ुशी छायी होती हर चेहरे पर, और कहीं कलह ना पाते,
किसी के दिल में रह पाते, फ़िर चाहे स्वर्ग में जगह ना पाते,
जानते काश अपने दिल के सारे राज़, चाहे खुद पर फ़तह ना पाते,
कुछ तो होता इतना बेवजह, कि खोजकर भी कभी वज़ह ना पाते.

बेताल होता सब कुछ, कहीं सुर-ताल और लय न पाते,
किसी के इशारे पर धड़कना छोड़ दे, काश ऐसा ह्र्दय ना पाते.
महकती खुशियाँ हर पल उनके ज़ीवन मे, चाहे हम कोई मलय ना पाते,
पाते कुछ भी चाहे मगर.... .... , पर आखोँ के सामने हर पल प्रलय ना पाते.


जाते जहाँ भी, जैसे भी, जब भी , मगर कभी तो जान ना पाते.
अन्जान रहते सारी दुनिया से, और दुनिया उसी को अपनी मान ना पाते,
ईन्सान बनने की एक कसमकश दिखती , चाहे कहीं भगवान ना पाते,
बार बार अन्धेरों मे धकेल देता है , काश वो आत्म-सम्मान ना पाते.

झन्कार मे मदहोश होते कभी तो, फ़िर चाहे संगीत ना पाते,
नफ़रत ही पाते ज़िन्दगी भर चाहे, पर एक पल की प्रीत ना पाते,
हारने के रिवाज़ ना होते कहीं... खोने की हम रीत ना पाते.
उनकी खुशी देख पाते एक बार..., फ़िर चाहे कभी जीत ना पाते.

- पंकज बसलियाल

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